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Motivational Quotes For Students To Study Hard In Hindi.

  Motivational Quotes For Students To Study Hard In Hindi.. Click here Story1 . अपने सपनों को जिंदा रखिए अगर आपके सपनों की चिंगारी बुझ गई है तो इसका मतलब है कि आपने जीते जी आत्महत्या या आत्मसमर्पण कर ली। Motivational Quotes For Students To Study Hard In Hindi. Story1. Keep your dreams alive If the spark of your dreams is extinguished then it means that you have committed suicide or surrendered while living. Story2. बस इतना पढ़ लेना कि जिस किताब को तुम पढ़ रहे हो भविष्य में उसमें एक चैप्टर तुम्हारा लिखा हुआ जुड़ जाए। Motivational Quotes For Students To Study Hard In Hindi. Story2. Just read it so that in the future a chapter written by you in the book should be added to it. Story3. पढ़ना आसान नहीं लेकिन और आसान काम करने वाले के हक में बस बंजर जमीन है आसमान नहीं। Motivational Quotes For Students To Study Hard In Hindi. Click here

मुंबई: ऑटो ड्राइवर ने पोती को पढ़ाने के लिए घर बेच दिया, मिला 24 लाख का 'इनाम'

 


  


 मुंबई: ऑटो ड्राइवर ने पोती को पढ़ाने के लिए घर बेच दिया, मिला 24 लाख का 'इनाम'


https://youtube.com/@motivation21637

https://youtube.com/shorts/I1F3Fg4J8Sg?feature=share


मुंबई में रहने वाले 74 साल के ऑटो ड्राइवर देशराज कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर वायरल हो गए थे. देशराज ने बताया था कि उन्होंने अपनी पोती को पढ़ाने के लिए अपना घर तक बेच दिया था और वे पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से अपने ऑटो को ही घर बना कर रह रहे हैं. उनकी कहानी सुनने के बाद हजारों लोग इमोशनल हो गए थे और अब उनके लिए फंड्स जुटाया गया और 24 लाख रूपए देशराज को डोनेट किए जा चुके हैं. 


 देशराज के लिए 20 लाख रूपए फंड जुटाने का टारगेट रखा गया था हालांकि ये टारगेट क्रॉस हो गया और उन्हें हाल ही में 24 लाख रूपयों का चेक मिला है ताकि वे अपने लिए एक घर ले सकें. ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे पेज ने हाल ही में देशराज के साथ एक वीडियो शेयर किया है जिसमें उन्हें 24 लाख के चेक के साथ देखा जा सकता है.


  इस पेज के कैप्शन में लिखा था कि देशराज जी को आप सबका भरपूर समर्थन मिला है. आप लोगों के प्रयासों से आज उनके पास एक पक्की छत है और वे इस घर में अपनी पोती को पढ़ा लिखकर टीचर भी बना पाएंगे. आप सभी लोगों का बहुत शुक्रिया. सोशल मीडिया पर मौजूद लोगों ने भी इस पोस्ट की तारीफ की और देशराज को शुभकामनाएं भेजीं.


    गौरतलब है कि देशराज के दोनों बेटे कुछ सालों के अंतराल में ही मर गए थे जिसके बाद से 7 लोगों के परिवार में उन पर ही जिम्मेदारी आ गई थी. पत्नी के बीमार होने के बाद देशराज के आर्थिक हालात भी काफी खराब हो गए थे. देशराज ने मुंबई में ऑटो ले लिया था और वे सारा दिन ऑटो चलाते और उसी में सोते थे. हालांकि तमाम कठिनाइयों के बावजूद वे अपनी पोती को पढ़ाने के लिए तत्पर थे और उनके दृढ़ निश्चय के चलते ही सोशल मीडिया पर कई लोग उनकी तारीफ कर रहे हैं. (सभी फोटो क्रेडिट: officialhumansofbombay इंस्टाग्राम)


  गौतमबुद्ध नगर: ग्रेटर नोएडा में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है. जहां पति ने ही अपनी गर्भवती पत्नी की गला दबाकर हत्या कर दी और 3 दिन तक लाश को ठिकाने लगाने की कोशिश करता रहा. लेकिन जब नाकामयाब रहा तो आरोपी पति ने खुद ही थाने में जाकर सरेंडर कर दिया. फिलहाल पुलिस ने महिला के शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है. वहीं, आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. 


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10 महीने पहले हुई थी शादी

पुलिस ने बताया कि ग्रेटर नोएडा शहर के बीटा-2 थाने क्षेत्र के अल्फा-2 में रजनीकांत दीक्षित अपनी पत्नी खुशी दीक्षित के साथ रहता था. दोनों की शादी करीब 10 महीने पहले ही हुई थी. रजनीकांत दीक्षित नेटवर्क इंजीनियर के पद पर तैनात था और नोएडा सेक्टर-20 में स्थित एक कंपनी में काम करता था. वह रोजाना सुबह 7 बजे नौकरी पर जाता था और शाम को करीब 7 बजे ही वापस घर आता था.  


 


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गर्भवती पत्नी की हत्या कर 3 दिनों तक घर में रखा शव, नहीं लगा पाया ठिकाने, तो थाने पहुंचकर कबूला गुनाह


Reported By: पवन त्रिपाठी | Updated: Feb 24, 2021, 20:22 PM IST

गर्भवती पत्नी की हत्या कर 3 दिनों तक घर में रखा शव, नहीं लगा पाया ठिकाने, तो थाने पहुंचकर कबूला गुनाह

सांकेतिक तस्वीर.

   

हत्या करने के बाद अपनी पत्नी के शव को सीवर टैंक में अंदर डालने का प्रयास किया था. लेकिन शव सीवर टैंक के अंदर नहीं डाल पाया. जिसके बाद व्यक्ति ने खुद ही थाने में जाकर सरेंडर कर दिया. 

गौतमबुद्ध नगर: ग्रेटर नोएडा में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है. जहां पति ने ही अपनी गर्भवती पत्नी की गला दबाकर हत्या कर दी और 3 दिन तक लाश को ठिकाने लगाने की कोशिश करता रहा. लेकिन जब नाकामयाब रहा तो आरोपी पति ने खुद ही थाने में जाकर सरेंडर कर दिया. फिलहाल पुलिस ने महिला के शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है. वहीं, आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. 


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10 महीने पहले हुई थी शादी

पुलिस ने बताया कि ग्रेटर नोएडा शहर के बीटा-2 थाने क्षेत्र के अल्फा-2 में रजनीकांत दीक्षित अपनी पत्नी खुशी दीक्षित के साथ रहता था. दोनों की शादी करीब 10 महीने पहले ही हुई थी. रजनीकांत दीक्षित नेटवर्क इंजीनियर के पद पर तैनात था और नोएडा सेक्टर-20 में स्थित एक कंपनी में काम करता था. वह रोजाना सुबह 7 बजे नौकरी पर जाता था और शाम को करीब 7 बजे ही वापस घर आता था.  




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इस बात को लेकर हुआ था विवाद

रजनीकांत दीक्षित ने पुलिस को पूछताछ में बताया कि एक दिन जब वह वापस घर लौटा तो उसके घर से एक व्यक्ति निकल रहा था. जब उसने अपनी पत्नी खुशी से उस व्यक्ति के बारे में पूछा तो उसकी पत्नी ने उसको काफी गंभीर जवाब दिया था. खुशी ने अपने पति को बताया कि "इस व्यक्ति का नाम बल्लू है. जब तक मेरा बच्चा पैदा नहीं होता, तब तक मैं तेरे साथ रहूंगी, बच्चा पैदा होने के बाद मैं बल्लू के साथ हरियाणा में रहूंगी." इस बात को लेकर दोनों में विवाद हुआ था.


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सीवर टैंक के अंदर नहीं डाल पाया शव, तो किया सरेंडर

रजनीकांत को अपनी पत्नी के किसी दूसरे मर्द से साथ अवैध संबंध बनाने को लेकर काफी गुस्सा था. जिसके चलते उसने पत्नी की गला दबाकर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद अपनी पत्नी के शव को सीवर टैंक में अंदर डालने का प्रयास किया था. लेकिन शव सीवर टैंक के अंदर नहीं डाल पाया. जिसके बाद व्यक्ति ने खुद ही थाने में जाकर सरेंडर कर दिया. पुलिस ने महिला के शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है. 


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वहीं, पुलिस ने बताया कि अवैध संबंधों के शक में आपस में झगड़ा हुआ. जिसके बाद पति ने पत्नी की गला दबाकर हत्या कर दी. आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है. मामले में वैधानिक कार्रवाई की जा रही है. 


   गोलघर... पटना में गंगा तट पर स्थित एक गोलाकार इमारत, 125 मीटर चौड़ा और 29 मीटर ऊंचाई वाला बिना किसी स्तंभ के खड़ी एक भव्य इमारत.


गोलघर पिछले 235 सालों से पटना की पहचान है, जिसे अंग्रेज़ी हुकूमत ने सिर्फ़ दो साल के भीतर सिर्फ़ एक लाख 20 हज़ार रुपए की लागत से तैयार कर दिया था. लेकिन बिहार सरकार करोड़ों रुपये ख़र्च करके भी पिछले एक दशक से गोलघर की मरम्मत का काम नहीं करा सकी है.


साल 2011 से ही गोलघर के ऊपरी हिस्से की दीवार में आई दरारों को भरने और जर्जर सीढ़ियों की मरम्मत का काम आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ASI) कर रही है.


एएसआई के मुताबिक़, दीवार की दरारों को तो भर लिया गया है. लेकिन सीढ़ियों की मरम्मत बाकी है.


 पटना सर्किल के सुप्रिटेंडिंग आर्कियोलॉजिस्ट एचए नाइक ने बीबीसी से कहा, "सीढ़ियों का काम बाक़ी इसलिए है क्योंकि बिहार सरकार की तरफ से उसके लिए दी जाने वाली राशि अब तक जारी नहीं की गई है


  जबकि इसके उलट बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग के प्रधान सचिव रवि परमार बीबीसी से कहते हैं, "देरी एएसआई वालों की तरफ से हो रही है. हम उनसे पिछले डेढ़ साल से खाता नंबर मांग रहे हैं ताकि राशि जारी की जा सके. लेकिन वे नहीं दे रहे थे. अब जाकर जब हमारी ओर से इसे लेकर शिकायत की गई तब उन्होंने अपने खाते की जानकारी दी है. फ़ंड रिलीज़ प्रकिया में है, बहुत जल्द हो जाएगा."


गोलघर के दीवार की दरारों को भरने का भी जो काम हुआ है, उससे बिहार का संबंधित विभाग संतुष्ट नहीं है. विभाग ने एएसआई को पत्र लिखकर अब तक के काम पर नाराज़गी जताई है और टीम गठित कर मरम्मत कार्य की जांच करने का कहा है.


  गोलघर के बनने की कहानी दिलचस्प है.


"पटना- एक खोया हुआ शहर" के लेखक और इतिहासकार अरुण सिंह कहते हैं, "अंग्रेज़ तब नए-नए भारत आए थे. 1764 में बक्सर का युद्ध जीतने के बाद पूरे बंगाल पर ईस्ट इंडिया कंपनी को शासन का अधिकार मिल गया था. लेकिन उन्हीं दिनों 1769-73 में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा. सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक़ उस अकाल में एक करोड़ से अधिक जानें गई थीं. भूख से जनता त्राहिमाम कर रही थी. कंपनी के लिए शासन करना चुनौती बन गया था. ऐसे में अनाज के संग्रह की जरूरत पड़ी."


गोलघर पर लगे शीलापट्ट में लिखा है कि इसका निर्माण अकाल के प्रभाव को कम करने के लिए 20 जनवरी 1784 को तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के आदेश पर हुआ था. जिसमें उन्होंने बंगाल प्रांत में एक विशाल अन्न भंडार बनाने को कहा था. इसे ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन जॉन गार्स्टिन ने बनाया


 गोलघर बनने के आठ साल बाद 1794 को पटना आए आए अंग्रेज विद्वान थॉमस ट्वीनिंग अपने संस्मरण "ट्रेवेल्स इन इंडिया, ए हंड्रेड ईयर्स एगो" में लिखते हैं, "पटना में मिस्टर ग्रिंडल के घर के नज़दीक मैंने अनाज रखने के लिए शंकु के आकार का एक विशाल भवन देखा. उपयोगिता इसके डिजाइन का पैमाना था, खूबसूरती नहीं. फिर भी इसकी बनावट की वज़ह से इसे सराहा जाता है. इसे आधे कटे हुए अंडे के आकार में बनाया गया था. यह भवन हमें सरकार के नेक इरादों (अकाल के लिए अन्न संग्रह) की याद दिलाता है."


आज़ाद भारत के लिए क्यों ख़ास है गोलघर?


अंग्रेज़ी हुकूमत के दौरान तो गोलघर का कभी उपयोग नहीं हुआ, लेकिन आज़ाद भारत में जैसे दिल्ली के लिए इंडिया गेट है, मुंबई के लिए गेट-वे ऑफ़ इंडिया है, आगरा के लिए ताजमहल है और हैदराबाद के लिए चारमीनार है, वैसे ही पटना के लिए गोलघर है.


दिल्ली में रहने वाले लेकिन मूल रूप से बिहार के प्रोफ़ेसर और इतिहास के जानकार जेएन सिन्हा कहते हैं, "बिहारियों की गोलघर से जुड़ी वो यादें हैं जो पीढ़ियों को जोड़ती हैं. यह वह इमारत है जिसे हर बिहारी पिता अपने बच्चे को दिखाना चाहता है, क्योंकि जब वह बच्चा था तब उसको भी गोलघर के बारे में पहली जानकारी अपने पिता से ही मिली. दो सदी से भी अधिक समय तक यह पटना की सबसे ऊंची इमारत रही."


प्रोफ़ेसर जेएन सिन्हा के मुताबिक़, जो भी गोलघर आता है उसकी हसरत होती है कि वो एक बार इस इमारत के ऊपर चढ़ सके.


गोलघर देखने आने के बचपन के अपने अनुभवों का ज़िक्र करते हुए सिन्हा कहते हैं, "145 सीढ़ियां चढ़कर गोलघर के शिखर तक जाना होता था. ऊपर से एक तरफ पूरा पटना शहर नज़र आता और दूसरी तरफ बहती गंगा का मनोहारी दृश्य. अंग्रेज़ों के लिए गोलघर भले ही वास्तुशिल्प की एक भूल थी, मगर हमारे लिए गोलघर महज़ अतीत ही नहीं गौरव भी है."


  मरम्मत की जवाबदेही किसकी?

क़रीब एक दशक पहले 2011 में जब गोलघर के ऊपरी हिस्से की दीवार पर दरारें दिखने लगीं तो उसकी मरम्मत का काम शुरू किया गया. बिहार सरकार ने इसके लिए विशेषज्ञ केंद्रीय एजेंसी एएसआई को अधिकृत किया.


लेकिन, सवाल यह है कि आख़िर एएसआई अब तक मरम्मत का काम पूरा क्यों नहीं कर पाई?


बीबीसी से बातचीत में एएसआई पटना सर्किल के सुप्रीटेंडेंट एचए नाइक इसके लिए बिहार सरकार को ज़िम्मेदार मानते हैं.


नाइक कहते हैं, "शुरुआत में हमें दीवार की दरारों को भरने का काम दिया गया. हमने वो काम तय समय में पूरा किया. हमारी ओर से उसकी उपयोगिता प्रमाण पत्र भी जमा की जा चुकी है. बाद में सीढ़ियों की मरम्मत के लिए कहा गया. पहले एक ओर की सीढ़ियों की मरम्मत की बात थी, फिर दोनों तरफ की सीढ़ियों की मरम्मत की योजना बनी. सारी प्रक्रिया हो गई लेकिन बिहार सरकार की तरफ़ से उसके लिए आज तक फ़ंड ही रिलीज़ नहीं किया गया."


मरम्मत के नाम पर गोलघर की सीढ़ियों का रास्ता तो फिलहाल बंद है लेकिन मरम्मत का काम हो नहीं रहा है. क्यों?


नाइक के मुताबिक़, इस साल इतनी देरी हो चुकी है कि अब अगर फ़ंड रिलीज भी कर दिया गया तो टेंडर निकालते और वर्क ऑर्डर पास कराते-कराते वित्तीय साल पार हो जाएगा. फिर एक नई प्रक्रिया शुरू करनी पड़ेगी. मरम्मत का काम तो अब अगले साल ही शुरू हो पाएगा.


फ़ंड रिलीज़ में देरी का सवाल जब हमने बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग के प्रधान सचिव रवि परमार से पूछा तो पहले तो उन्होंने दावा किया कि फ़ंड रिलीज़ किया जा चुका है. लेकिन, एएसआई के सुप्रिटेंडेंट एचए नाइक के बयान को सुनने के बाद जब उन्होंने अपने अधीनस्थ अधिकारियों को फोन लगाया तो पता चला कि अब तक वाकई फ़ंड रिलीज़ नहीं हुआ है.


हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि अब तक जो काम हुआ है विभाग उससे भी संतुष्ट नहीं है.


जबकि गोलघर के बदले रंग पर एएसआई का कहना है, "किसी भी इमारत का रंग बरकरार रखने के लिए समय-समय पर उसके रंगाई-पुताई की जरूरत पड़ती है. आप बिहार सरकार से पूछिए कि उन्होंने इसके लिए आख़िरी बार कब ख़र्च किया था. एएसआई किसी भी धरोहर के असली रूप को संरक्षित रखने का काम करती है. दीवार की दरारों को भरने के लिए हमारी ओर से उसमें केवल लाइम प्लास्टर का इस्तेमाल किया गया है क्योंकि वह उसी से बना है."

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